Review in Hindi of Parry (2020)

 

Jonathan Parry (in collaboration with Ajay T.G.) (2020)1 Classes of Labour: Work and Life in a Central Indian Steel Town. Oxon and New York: Routledge. ISBN 9781138095595 (hardback) 9780367510329 (paperback) 9780203712467 (e-book). 732 pages. £112 (hardback); £29.59 (paperback); £29.59 (e-book).

 Reviewed by Suravee Nayak, Centre for Development Studies, India

 

[This book review is also available in English in Volume 12, Issue 2 of the Global Labour Journal, https://mulpress.mcmaster.ca/globallabour/issue/view/423]

  

पुस्तक समीक्षा

 

जोनाथन पैरी (अजय टी. जी. के सहयोग से) (२०२०) क्लासेस ऑफ लेबर: वर्क एंड लाइफ इन सेंट्रल इंडियन स्टील टाउन ऑक्सन और न्यूयॉर्क: रूटलेज। आईएसबीएन ९७८११३८०९५५९५ (हार्डबैक) ९७८०३६७५१०३२९ (पेपरबैक) ९७८०२०३७१२४६७ (ईबुक)७३२ पृष्ठों। हार्डबैक £ ११२; पेपरबैक £ २९.५९; ईबुक £ २९.५९

 

सुरभी नायक, सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज, भारत

 

जोनाथन पैरी द्वारा ‘क्लासेस ऑफ लेबर’, नेहरू की आधुनिकता की परियोजनाओं में से एक - मध्य भारत में स्थित भिलाई स्टील प्लांट (बीएसपी) और इसकी टाउनशिप में ३४ महीने की नृवंशविज्ञान पर आधारित है । ७३२ पृष्ठों का यह सावधानीपूर्वक लिखा गया मोनोग्राफ औद्योगिक श्रम के ६० साल के काम और सामाजिक जीवन (१९५५ से २०१४) को वर्णन करता है । यह पुस्तक सार्वजनिक क्षेत्र के इस्पात संयंत्र, विभिन्न किस्मों के निजी क्षेत्र के कारखानों के श्रम तथा अनौपचारिक क्षेत्र के कार्यबलों पर केंद्रित है।

समीक्षाधीन पुस्तक में भिलाई के कार्यशालाओं और आस-पड़ोस दोनों का विश्लेषण करके ‘मैनुअल’ श्रमशक्ति में वर्ग भिन्नता की पड़ताल की गई है। पैरी का तर्क है कि भिलाई में श्रमिक वर्ग दो अलग-अलग ‘श्रम के वर्गों’ में विभाजित है - नौकरी  (नियमित बीएसपी कार्यकर्ता- जो श्रम अभिजात्य वर्ग के रूप में पाए गए हैं) और काम  (अनुबंध और अस्थायी, और अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिक- जो मज़दूर वर्ग के रूप में पाए गए हैं)। श्रम अभिजात्य वर्ग कभी-कभी मज़दूर वर्ग के खिलाफ शोषण का रिश्ता रखते हैं। लेखक का तर्क है कि भिलाई स्टील प्लांट (बीएसपी), उसकी टाउनशिप और मिडिल क्लास हाउसिंग कॉलोनियाँ, पुराने पदानुक्रमों या मौलिक जाति आधारित संबंधों को पिघलाने वाले पात्र यानि के - ‘मेल्टिंग पॉट’  हैं। पैरी हमें दिखाते हैं कि ‘वर्ग अब जाति से श्रेस्ठ है और असमानता का प्रमुख अक्ष है ’(पृष्ठ. ४), जो कि समकालीन सामाजिक ‘श्रम के वर्गों’ अथवा ‘क्लासेस ऑफ लेबर’ को आकार देता है। भारत में ‘पारंपरिक’ जाति संबंधों की विशेषता रखने वाले हिंदू धर्म की उच्च जाति और निम्न जातियों के बीच न केवल जातियों के पदानुक्रम, श्रम के विभाजन और परस्पर निर्भरता, तथा पृथक्करण की भी कमजोर पड़ने की लेखक पहचान करते  हैं।

श्रम अभिजात्य वर्ग और मज़दूर वर्ग के बीच वर्ग विभाजन का विश्लेषण केवल वेतन, जीवनशैली और जीवन की संभावनाओं के आधार पर नहीं किया गया है, ‘बल्कि रिश्तेदारी और विवाह प्रथाओं, जो मूल गांव के साथ संबंधों पर रखा जाता है, जाति का महत्व दैनिक जीवन में और पड़ोसियों के बीच संबंधों की बनावट और यहां तक ​​कि आत्महत्या करने की प्रवृत्ति में भी '(पृष्ठ. ४) ध्यानपूर्वक अनुसंधान किया गया है । पुस्तक के तेरह अध्यायों को चार भागों में व्यवस्थित किया गया है । इन चार भागों में परिचय और निष्कर्ष शामिल हैं - संदर्भ, कार्य, जीवन और समापन

पुस्तक का पहला भाग (अध्याय १- ४) प्रमुख तर्कों को निर्धारित करता है और हमें इसके संकल्पनाओं से परिचय कराता है जिसके आधार पर तर्क तैयार किए गए  हैं। यह पाठक को  भिलाई टाउनशिप बनाने के पीछे की राजनीतिक अर्थव्यवस्था और ऐतिहासिक प्रक्रियाओं की भी जानकारी देता है। लेखक का दावा है कि भिलाई ‘विकास की त्रासदी’ का प्रतिनिधित्व करने वाले उदाहरणों में से नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय एकीकरण और आधुनिकता का प्रतीक है। बीएसपी - एक औद्योगिक मोनोकल्चर के रूप में, भारत के अन्य इस्पात संयंत्रों से अलग है । बीएसपी की कार्यबल में प्रवासी श्रमिकों (देश के विभिन्न हिस्सों से) के प्रबल संख्या के कारण विषम जातीय और सांस्कृतिक रूप से विविध कार्यबल है। प्रवासन प्रक्रिया जितना भिलाई की कंपनी संस्कृति के निर्माण में अविभाज्य है, उतना ही प्रवासियों के लिए स्व-परिवर्तन प्रक्रिया के रूप में देखा गया  है। इसके अलावा, बीएसपी ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर खड़े दलितों, आदिवासियों और पिछड़े वर्ग समुदायों (हिंदू धर्म की जाति व्यवस्था के सबसे निचले पायदान पर स्थित) के लिए भी सकारात्मक कार्रवाई के माध्यम से गंतव्य बन गया।

वेबर के वर्ग की संकल्पना के आधार पर (मार्क्स की संकल्पना की सीमाओं की गहन चर्चा के साथ), लेखक ने जीवन की संभावनाओं पर ध्यान केंद्रित किया है जो कि किसी विशेष वर्ग के भीतर और श्रम के दो वर्गों के बीच काम करने और रहने की परिस्थितियों में समानता और असमानताओं को आकार देता है । इसके अलावा, पैरी के दो ‘श्रम के वर्गों’ - नौकरी और काम  की समझ, हेनरी बर्नस्टीन और जेन्स लेर्चे की समझ से बिल्कुल अलग है। दो ‘श्रम के वर्गों’ के बीच जीवन के अवसरों और गतिशीलता का उनका सावधानीपूर्वक विश्लेषण लेखक को पहाड़ के रूपक की तुलना में ‘सिटाडेल’ यानि के गढ़ की पुष्टि करने में सक्षम बनाता है। सामाजिक स्तरीकरण विश्लेषण के बजाय गिडेंस की वर्ग संरचना की चर्चा के उपयोग के साथ, वह यह बताते हैं कि जिनके पास नौकरी  (नियमित बीएसपी कार्यकर्ता) है वे सबसे विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग हैं, श्रम पदानुक्रम के शीर्ष पर, और एक ‘सिटाडेल’ अथवा गढ़ के अंदर हैं। श्रम पदानुक्रम के शीर्ष और नीचे के बीच के प्रखर विराम पर जोर देकर, वह दावा करते हैं कि गढ़ के बाहर गिरने वाले बाकी मजदूरों को नौकरी की सुरक्षा, मध्यम वर्ग की जीवनशैली, और ऊपर की और गतिशीलता से बाहर रखा गया है, जो कि श्रम अभिजात्य वर्ग- नियमित बीएसपी कार्यकर्ताओं के पास है। भिलाई के कथा के माध्यम से, वह दिखाते हैं कि तीक्ष्ण भेद भारत में संगठित और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के बीच नहीं है बल्कि संगठित क्षेत्र के एक अंश (नियमित बीएसपी कार्यकर्ता) और शेष (अनुबंध और अस्थायी श्रमिकों और अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों) के बीच है।

पुस्तक का दूसरा भाग (अध्याय ५-८) भिलाई के कार्यशालाओं, बीएसपी के विभिन्न निजी कारखानों और अनौपचारिक क्षेत्र के कार्यस्थलों- विशेष रूप से भिलाई में निर्माण क्षेत्र की जांच करके ‘श्रम के वर्गों’ को आकार देने वाले महत्वपूर्ण कारणों का पता लगाता है। लेखक वर्ग की स्थिति का पता लगाने के लिए तीन स्तिथियों की जांच करते हैं जो हैं - बाजार की स्थिति (पर्स के स्रोत और आकार, नौकरी/ काम की सुरक्षा और ऊपर की और व्यावसायिक गतिशीलता की संभावना सहित), कार्य स्थिति (इसके सदस्यों के कामकाजी संबंध), और हैसियत की स्थिति (प्रतिष्ठा के पदानुक्रम में इसकी स्थिति) '(पृष्ठ. १६३) ।

पैरी ने पाया कि बीएसपी कार्यकर्ता देश में श्रेष्ठ भुगतान किए जाते हैं तथा अर्ध-स्वचालित पदोन्नति और मध्यम वर्ग की जीवनशैली भी उन्हें प्राप्त है । श्रम अभिजात्य वर्ग ‘मूनलाइटिंग’ व्यवसायों से अतिरिक्त आय भी करते हैं। बीएसपी के कार्यशालाओं और इसकी भर्ती प्रथाओं में कई बदलावों के बावजूद, ट्रेड यूनियन के निलंबन और वर्षों से सख्त श्रम व्यवस्थाओं के बावजूद, पैरी का मानना ​​है कि नौकरी धारकों के विशेषाधिकार बरकरार हैं। दूसरी ओर, बीएसपी में अनुबंधित श्रमिकों की बढ़ती संख्या है, जो बकाया वेतन के साथ ठेकेदारों के साथ बंधित है और उनकी नौकरियां असुरक्षित हैं। नियमित बीएसपी कार्यकर्ता अनुबंध श्रमिकों की निगरानी करते हैं, और उनके बीच कोई साझा हित नहीं है बल्कि अक्सर हितों का विरोध करते पाए जाते हैं जो उनकी श्रमिक संघ की राजनीति में भी परिलक्षित होता है। श्रम अभिजात्य वर्ग एक ही जाति के संविदा कर्मियों की तुलना में एक ही वर्ग के विभिन्न जातियों के साथ बातचीत और सामाजिककरण करते हैं।

लेखक श्रम पदानुक्रम के भीतर विभिन्न श्रेणीकरण की पहचान करते हैं और वर्ग संरचना की सीमाओं के आसपास अस्पष्टता की पहचान भी करते हैं; हालाँकि, वह नौकरी और काम  के बीच तीखे अंतर को इंगित करते हुए ‘सिटाडेल’ मॉडल की पुष्टि करते हैं । बड़े कारखानों में नियमित श्रमिकों को छोड़कर, बाकी अनुबंध और अस्थायी श्रम अस्थिर रोजगार और आय के साथ अनौपचारिक क्षेत्र के श्रम के सबसे निचले पायदान के साथ आम तौर पर 'काम' की अनिश्चितता में आते हैं, और जिनके पास ऊपर की ओर गतिशीलता का कोई अवसर नहीं है। निर्माण क्षेत्र में अनौपचारिक श्रम करनेवाले स्थानीय छत्तीसगढ़ी महिलाओं (बहुसंख्यक दलित) का मामला उठाते हुए, पैरी हमें उनके श्रम और यौन शोषण के माध्यम से लिंग और वर्ग संबंधों के प्रतिच्छेदन को दर्शाते हैं । मजदूर वर्ग की महिलाओं को असम्मानजनक माना जाता है और उन्हें प्रदूषण से जोड़ा जाता है, अपने घरों की घरेलू श्रम में लगे श्रमिक कुलीन घरों की महिलाओं से अलग देखा जाता है ।लेकिन पैरी यह रेखांकित करते हैं कि श्रम अभिजात्य वर्ग सामान्य रूप से पुरे ‘मज़दूर वर्ग’ को इन कारणों से लांछित करते हैं । वह नौकरी धारकों की युवा पीढ़ी के लिए श्रम अभिजात्य वर्ग के विशेषाधिकारों को पुन:उत्पन्न करने और बनाए रखने में चुनौतियों का भी निरीक्षण करते हैं जो ऐसी परिस्थितियों में ‘मूनलाइटिंग’ व्यवसायों में लगे होते हैं । हालांकि, यह स्पस्ट करते हैं कि मज़दूर वर्ग के बच्चों की तुलना में ‘नौकरी’ श्रम अभिजात्य वर्ग के बच्चों द्वारा हासिल की जा सकती है।

पुस्तक का तीसरा भाग (अध्याय ९-१२) दो ‘श्रम के वर्गों’ के सामाजिक जीवन में अंतर को दर्शाता है। दिलचस्प बात यह है कि इस पुस्तक में उनके आवासीय स्थानों की स्थानिकता, बचपन के अनुभवों, वैवाहिक प्रथाओं और यहां तक ​​कि दो ‘श्रम के वर्गों’ के बीच आत्महत्या के लिए अलग-अलग प्रवृत्तियों में महत्वपूर्ण अंतर पर चर्चा की गई है। बीएसपी कार्यकर्ता टाउनशिप और मध्यम वर्ग आवास कॉलोनी जैसे अलग सामाजिक स्थान में रहते हैं जबकि मज़दूर वर्ग बस्ती (पूर्व गांव सह श्रमिक कॉलोनिआँ) में रहते हैं । मज़दूर वर्ग गरीब आवास, निचले जीवन स्तर और उपभोग पैटर्न के आधार पर श्रम अभिजात्य वर्ग से अलग होते हैं। । बस्ती को दलितों और उच्च जाति के हिंदुओं के बीच आवासीय रूप से अलग किया जाता है, जो टाउनशिप और मध्यम वर्ग आवास कॉलोनी में श्रम अभिजात्य वर्ग के लोगों के बीच अनुपस्थित है।

दो ‘श्रम के वर्गों’ के बच्चों के बचपन का अनुभव भी अलग-अलग होते हैं, जहाँ श्रम अभिजात्य वर्ग के बच्चे शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हैं और नौकरी हासिल करने के लिए योग्यता पर समय बिताते हैं, इसके विपरीत मज़दूर वर्ग के बच्चे शैक्षिक प्रतिस्पर्धा से मुक्त हैं और बड़े होकर मजदूरी कर मज़दूर वर्ग में शामिल हो जाते हैं। इसी तरह, दो ‘श्रम के वर्गों’ के बीच वैवाहिक प्रथाएं काफी अलग हैं जहां तलाक, पुनर्विवाह और अंतरजाती विवाह (केवल पुनर्विवाह के मामले में) मज़दूर वर्ग में अधिकांश पाई जाती हैं। दूसरी ओर, शादी की स्थिरता, सम्मानजनक विवाह के आदर्श और वैवाहिक संबंधों के नए विचारों के लिए श्रम अभिजात्य वर्ग दौड़ लगाते हैं ।

लेखक अलग-अलग कारणों से श्रम के दो वर्गों में आत्महत्या के दो अलग-अलग पैटर्न को सफलतापूर्वक प्रस्तुत करते है। जबकि, काम पर तंग शासन की वजह से, श्रम अभिजात्य वर्ग युवा पीढ़ी के पुन:पेश करने में असमर्थता, मध्यम वर्ग जीवन स्तर बनाये रखने में नाकामी और वैवाहिक मुद्दों में विफलता के कारण कई श्रम अभिजात्य वर्ग के लोगों ने अपनी जान ले ली । वहां मज़दूर वर्ग प्रेम संबंधों और अंतरजाती पुनर्विवाह के कारण आत्महत्या कर लेते हैं ।

समापन भाग (अध्याय १३) में, लेखक वर्ग और अन्य सामाजिक संरचनाओं के प्रतिच्छेदन, विशेष रूप से, जाति, लिंग और जातीयता को दर्शाते हैं । अधिकांश संदर्भों में, पैरी का तर्क है कि अन्य सामाजिक संरचनाओं के तुलना में वर्ग संरचना मुख्य रूप से दोनो ‘श्रम के वर्गों’ के काम और सामाजिक जीवन को आकार देती है और परिभाषित करती है। लेखक नौकरी /काम  के उपयोगी विश्लेषण की वर्णना भारत में और भारत के बाहर अन्य औद्योगिक सेटिंग्स में करते हैं जहां श्रमिक वर्ग को वर्ग द्वारा विभाजित किया जाता है।

विश्लेषण की गहराई एक पाठक को इस पुस्तक में दिए गए तर्कों पर विवाद करने के लिए सीमित करती है। हालाँकि, मजदूर वर्ग को समझने में ‘काम ’की संकल्पना को कैसे समझा जाए, इस बारे में कई अनिश्चितता है, जबकि लेखक अक्सर काम के भीतर की जटिलताओं और श्रेणीकरण को पहचानते है। यदि नौकरी /काम  के विभाजन के चर्चा के अलावा, अगर समानांतर चर्चा उस मध्यस्थ समूह जिसे पैरी कहते हैं ‘बफर ज़ोन’ को भी समर्पित की जा सकती, तो विश्लेषण अधिक ठोस और फलदायी होता। दो ‘श्रम के वर्गों’ के बीच ‘बफर ज़ोन’ के बारे में अधिक जानने की दिलचस्पी महसूस होती है, खासकर जब श्रम अभिजात्य वर्ग के बेटे अक्सर खुद को नौकरी में पुन:उत्पन्न करने में असफलता के कारण ‘बफर ज़ोन’  में पाए जाते है । इसके अलावा, श्रम ठेकेदार की जीवनशैली और जीवन की संभावना एक निर्माण श्रमिक से काफी भिन्न हो सकती है। फिर सवाल उठता है ‘काम’ के विभिन्न सदस्यों के बीच वर्ग चेतना और एकजुटता का, और उनके बीच प्रभुत्व और शोषण की संभावनाओं का भी। एक पाठक इन जवाबों को तलाशने के लिए उत्सुक रहता है।

लेखक बीएसपी कार्यशालाओं और टाउनशिप की पहचान पुराने पदानुक्रमों या मौलिक जाति आधारित संबंधों को पिघलाने वाले पात्र यानि के - ‘मेल्टिंग पॉट’  के रूप में करते हैं । हालाँकि, लेखक ने वर्ग, जाति, लिंग और जातीय संबंधों का ध्यानपूर्वक विश्लेषण किया है परन्तु वर्ग संरचना में भंग के कई सबूत भी हैं। यह विचार में आता है की क्या श्रमिकों की व्यक्तिपरकता सिर्फ वर्ग संरचना के बजाय अतिव्यापी जाति, वर्ग और लिंग संरचनाओं द्वारा आकार लेती है।विशेष रूप से, श्रम अभिजात्य वर्ग के दलित या मजदूर वर्ग की दलित महिलाओं के काम और सामाजिक जीवन के बहुस्तरीय अनुभव। लेखक स्वयं यह स्वीकार करते हैं कि दलित बीएसपी कार्यकर्ता अपनी जाति के साथ अपनी पहचान रखते हैं, जबकि उच्च जाति के बीएसपी कार्यकर्ता आरक्षण के माध्यम से काम कर रहे दलित-आदिवासी बीएसपी कार्यकर्ताओं को उन लोगों के रूप में देखते है जिनमें योग्यता की कमी है। प्राथमिक विवाह जाति अंतर्विवाही (यहां तक ​​कि श्रम अभिजात्य वर्ग के लोगों के भीतर भी) रहते हैं, और मजदूर वर्ग की दलित महिलाओं को ‘शक्तिशाली पुरुषों के लिए यौन रूप से उपलब्ध माना जाता है ’(पृष्ठ. ६२१)। हालांकि, लेखक इन पर अधिक बारीकी से जांच नहीं करते हैं । प्रवासियों और स्थानीय लोगों के बीच तनाव की उपस्थिति में, सवाल यह भी है कि हम ‘कंजुगेटेड ओप्प्रेशन’ (जो कि जाति, लिंग और जातीयता के साथ वर्ग संबंधों के सह-संविधान का वर्णन करता है और जो स्थानीय लोगों द्वारा प्रवासी श्रमिकों के हाशिए, प्रभुत्व और भेदभाव को बढ़ाता है) के अन्य संदर्भों के विपरीत प्रवासन के इस समृद्ध विश्लेषण को कैसे समझा जाए (लेर्चे और शाह,२०१८)।

यह पुस्तक व्यापक अपील रखती है और इसे अनुशासनों के आर-पार श्रम विद्वानों को पढ़ना चाहिए। भिलाई की बारीक नृवंशविज्ञान ने पैरी को भारत और उसके बाहर औद्योगिकीकरण, विकास और परिवर्तन, श्रम पदानुक्रम और विखंडन, प्रवासन और वर्ग असमानता के विभिन्न क्रॉस-कटिंग थीम में प्रासंगिक योगदान देने में सक्षम बनाया है। श्रम अभिकर्तृत्व, सामूहिक कार्रवाई और श्रम जुटाव के जटिल प्रश्नों पर इसके निहितार्थ बड़े और अधिक महत्व के हैं।

 

संदर्भ

लेर्चे, जे।, और शाह, ए। (२०१८)। कंजुगेटेड ओप्प्रेशन वीथिन कंटेम्पररी कैपिटलिज्म: क्लास, कासते, ट्राइब एंड अग्रेरियन चेंज इन इंडिया।थे जर्नल ऑफ़ पैज़न्ट स्टडीज, ४५ (५-६), ९२७-९४९।

 

लेखिका के बारे में

सुरभी नायक सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज, भारत में एक डॉक्टरेट शोधकर्ता हैं। वह अपने पीएचडी के लेखन चरण में है जिसका शीर्षक है "डिस्पोजिशन, लेबर प्रोसेस एंड प्रोडक्शन ऑफ स्पेस: ए स्टडी ऑफ कोल माइन्स इन तालचेर, ओडिशा" जो भारत की कोयला खदानों में श्रम प्रक्रिया पर केंद्रित है विशेष रूप से भूमि अधिग्रहण के संदर्भ में। उनके अनुसंधान हितों में वैश्विक दक्षिण में हो रहे कोयला खनन की राजनीतिक अर्थव्यवस्था और भूमि अधिग्रहण, श्रम प्रक्रिया और श्रम अभिकर्तृत्व शामिल है [ईमेल: suraveenayak@gmail.com]